एक दुखी बाप की व्यथा
कब अइबा ए बरदेखुआ, कब करबा उद्धार,
लखना भइल पच्चीस बरस के भागत बा हरिद्वार।
भागत बा हरिद्वार अब उ साधू हो जाई.
एहर-वोहर भटकी त उ बेकाबू हो जाई।
कवन उपाय करीं ए भइया दिक्क्त में परिवार,
लखना भइल पच्चीस बरस के भागत बा हरिद्वार।
हम कहनी बेटा पढ़िल तू, हमरे जीयत कछु करि ल तू,
लेकिन हमरे बाती के ना देहला तनिको ध्यान।
हाथ में सिगरेट के पैकेट, मुँह में मसाला पान,
झूम-झूम के गावत रहलअ, पकौड़ी चटनी बिना कइसे कटी।
हम सोचनी आई पतोहिया त देयी एक लोटा पानी,
चाहे एक हाथ क लूला हो, चाहे एक आँख क कानी।
करे खातिर लखना के बिआह ले ले दस-बीस हजार,
कवन उपाय करीं ये दादा डूबत बा परिवार।
एक दिन हम साँझी के जब लखना के खोजत रहनी,
मिल गइलें मंगरू काका उनहीं से हम पूछत रहनी।
तबले देखनी चार जने में आगे बाने अगुवा,
हम कहनी बस करा काका, इ हवें बरदेखुआ।
इनके बैठाव पूछ इनके हाल-चाल,
लगता ए काका अवकी गल जाई दाल।
तब-लक एक जने पूछने लइका तनी द देखाई,
हम कहनी रऊऔं तनिको न घबराई।
लखना जइसन लइका रउआ दुनिया में नही पाया,
तब-लक लखना गावत जइसे पिअक्कड़।
हम कहनी सारे गाजा पिअले कौनो चक्कड़,
अरे धीरे-धीरे बोल,
नहीं त वरदेखुआ के आगे खुल जाई सब पोल।
इतना सुन लखना कहले दादा जाके कहि द,
चाहे चली कटारी चाहे लाठी डण्डा।
हमके चाहीं हीरो-होंडा, हमके चाहीं हीरो-होण्डा।
एतना सुनके लखना के मरली दुइ डण्डा,
हम कहनी कवने करनी पेते लेबे हीरो होण्डा।
सब देख बरदेखुआ भगलअ धुरियापार,
हम कहनी सुनु ल बात हमार।
उ कहलं आके फोरवावेक बा आपन कपार,
एसे अच्छा लड़की रही हमार कुवाँर।
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